गुरु पूर्णिमा पर विशेष
गुरु/बुद्ध पूर्णिमा …
यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। परम्परागत रूप से यह दिन गुरु पूजन के लिए निर्धारित है। इस खास दिन पर शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। इस पर्व को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
महत्व: महर्षि वेद व्यास महाभारत के रचयिता थे। माना जाता है कि हिंदू धर्म में 18 पुराणों की रचना वेद व्यास ने ही की थी। इतना ही नहीं वेदों का विभाजन करने का श्रेय भी इन्हीं को प्राप्त है। इनकी जयंती के दिन गुरुओं की पूजा की जाती है, उन्हें सम्मान देकर पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इस दिन घर के बड़े बुजुर्गों के भी पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि जिस तरह व्यक्ति इच्छा प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करता है, ठीक उसी तरह व्यक्ति को जीवन में सफल होने के लिए गुरु की सेवा और भक्ति करनी चाहिए।
गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त:
आज सूर्योदय से 17.09 बजे तक
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि:
इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। संभव हो तो इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके पास जाएं। अगर ऐसा न कर पाएं तो अपने ईष्ट देव की तस्वीर घर में एक स्वच्छ स्थान पर रखें। इसके बाद अपने गुरु की तस्वीर को पवित्र आसन पर विराजमान करें और उन्हें पुष्प की माला पहनाएं। उन्हें तिलक और फल अर्पित करें। इसके बाद अपने गुरु की पूजा करें।
गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश गुरु पूर्णिमा के दिन सारनाथ में दिया था। इसलिये बौद्ध आज बुध पूर्णिमा मनाते हैं। बौद्ध अनुयायियों के लिए यह दिन खास होता है. उत्तर प्रदेश के वाराणसी के सारनाथ में भगवान बुद्ध का मंदिर है. भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपना पहला उपदेश दिया था. इस बार बुद्ध पूर्णिमा पर उनके उपदेश स्थली सारनाथ में बौद्ध अनुयायी उनके अस्थि अवशेष के दर्शन कर पाएंगे.
महाबोधि सोसाइटी के भिक्षु सुमितानंद थेरो ने बताया कि वैशाख पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती मनाई जाती है. इस बार उनकी 2,667वीं जयंती मनाई जाएगी. इस अवसर पर श्रद्धालु भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष के दर्शन कर पाएंगे. सारनाथ स्थित मुलगंघ कुटी बौद्ध मंदिर में यह अस्थि कलश रखा जाएगा. 5 मई के दिन सुबह से लेकर देर रात तक श्रद्धालु इसके दर्शन कर पाएंगे.
कई देशों से आते हैं अनुयायी
सारनाथ से भगवान बुद्ध का पुराना नाता रहा है. इस वजह से बौद्ध देशों के अनुयायी बड़ी संख्या में यहां दर्शन के लिए आते हैं. श्रीलंका, म्यामांर, इंडोनेशिया, चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, तिब्बत सहित कई देशों से लोग यहां दर्शन और घूमने के लिए आते हैं. पांच मई, 2023 को इन देशों के अनुयायियों की यहां लंबी कतार रही.
यदि आप भी भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों के दर्शन करना चाहते हैं तो वाराणसी आइए. सारनाथ में आप न सिर्फ भगवान बुद्ध के अस्थि के दर्शन कर पाएंगे, बल्कि इसके अलावा, काशी विश्वनाथ धाम और काशी के ऐतिहासिक घाटों का दीदार करने के साथ-साथ कई दार्शनिक जगहों पर भी घूम सकेंगे.
साभार व्हाट्सएप ग्रुप