अमेरिका में बड़ा बदलाव: H-1B वीज़ा पर अब देना होगा 1 लाख डॉलर सालाना शुल्क, भारतीय IT सेक्टर पर पड़ेगा सीधा असर |
एमजी न्यूज़ नेटवर्क : वाशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए विदेशी टेक वर्कर्स को मिलने वाले H-1B वीज़ा पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया है। नई घोषणा के अनुसार अब इस वीज़ा के लिए कंपनियों और उम्मीदवारों को हर साल 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) का शुल्क देना होगा।
ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि इस कदम से अमेरिकी श्रमिकों के रोजगार की सुरक्षा होगी और केवल उन्हीं पेशेवरों को अमेरिका में काम करने का अवसर मिलेगा जो अत्यधिक कौशल और विशिष्ट योग्यता रखते हों।
क्या है H-1B वीज़ा?
H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को यह सुविधा देता है कि वे विदेशी पेशेवरों को अस्थायी तौर पर भर्ती कर सकें। इसका सबसे ज़्यादा लाभ भारतीय आईटी कंपनियाँ और इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर तथा कंसल्टिंग सेक्टर के कर्मचारी उठाते हैं। हर साल हजारों भारतीय पेशेवर इस वीज़ा के लिए आवेदन करते हैं।

नई नीति का प्रभाव
इस भारी शुल्क से विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका जाना महंगा हो जाएगा।
छोटे और मध्यम स्तर की आईटी कंपनियों पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि वे इतनी बड़ी लागत वहन नहीं कर पाएंगी।
भारतीय आईटी सेक्टर को विशेष रूप से झटका लग सकता है, क्योंकि H-1B वीज़ा धारकों में भारतीयों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि उच्च कौशल वाले कई पेशेवर भारी शुल्क की वजह से अमेरिका जाने से पीछे हट सकते हैं।
राष्ट्रपति ट्रम्प का तर्क
व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया कि कुछ कंपनियाँ H-1B वीज़ा का उपयोग कम वेतन पर विदेशी श्रमिकों को भर्ती करने के लिए करती हैं, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों के अवसर घटते हैं। नए शुल्क से यह सुनिश्चित होगा कि केवल वही विदेशी कामगार अमेरिका आएं जिनकी जगह अमेरिकी पेशेवर नहीं ले सकते।


